एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति ....
सचिन यूँ ही नहीं महान हैं । सचिन जैसा ना पहले कोई था, ना दूसरा कोई होगा । सर्वाधिक एकदिवसीय और टेस्ट शतक । सर्वाधिक एकदिवसीय और टेस्ट रन। अंतरराष्ट्रीय मैच में तीस हज़ार से ज्यादा रन । पहला एकदिवसीय दोहरा शतक । शतकों का शतक । एकदिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक बार मैन ऑफ द मैच। सर्वाधिक विश्वकप शतक । 200 अंतरास्ट्रीय टेस्ट और 463 एकदिवसीय मैच खेलने के विशाल रिकॉर्ड के साथ सचिन अपराजेय लगते हैं ।
(कुछ छूट गया हो तो आपलोग जोड़ लीजियेगा)
ऊपर के आंकड़ों में 90-99 रनों के बीच 28 बार आउट होने और 80-89 रनों के बीच 30 बार आउट होने को सचिन अगर शतक में तब्दील कर, जोड़ पाते तो रिकॉर्ड क्या होता इसे कहने की क्या ही जरूरत है।
(गेंदबाज़ी कैरियर को अभी छोड़ देते हैं)
ख़ैर ! ऊपर के आँकड़े ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सचिन केवल क्रिकेट खेलने नहीं आए थे । उन्होंने क्रिकेट के हर स्वरूप को रचा है। जिसमें विलक्षण शॉट्स हैं । मर्यादित खेल भावना है । समर्पित संयम है और धीर-भीर और गम्भीर स्वभाव है ।
क्रिकेट के 24 साल के लंबे कैरियर के दौरान मैदान पर ऐसी घटनाएं विरले ही देखने को मिलती थी जब सचिन विचलित होकर खेल मर्यादा को लाँघ रहे होते थे।
ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ़्रीका, वेस्टइंडीज और पाकिस्तान के दुर्धस गेंदबाजों के गलीच टिप्पणियों का प्रतिउत्तर सचीन ने हमेशा अपने बल्ले से ही दिया था और यह सिद्ध किया था कि वो यहाँ गालियाँ सुनने के लिए नहीं, पूजे जाने के लिए आया है ।
सचिन ने कई यादगार पारियाँ खेली हैं । हरेक प्रशंसक की अपनी सूची भी है । लेकिन सचिन की एक पारी सभी प्रशंसको की सूची में आज भी ऊपरी पायदान पर विराजती है । जब एक फूहड़/मूढ़ पाकिस्तानी गेंदबाज, अपने सर्वश्रेष्ठ होने के स्तम्भित दम्भ और सचिन को नवसिखुवा होने के पूर्वाभास में, यह चुनोती दे देता है कि "तुम मेरे गेंद को छू कर तो दिखाओ" और अगले ही क्षण उसके फूहड़पन और मूढ़मति का प्रतिउत्तर सचिन के दनदनाते शॉट्स देते हैं, फलस्वरूप दर्शकदीर्घा में जो खुशियों की कोलाहल आती है उसका स्मरण भी मंत्रमोहित करता रहता है ।
दुनियाँ के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों ने जहाँ सचिन का लोहा सहर्ष मानना स्वीकार किया था वहीं पाकिस्तानी चिरकुट गेंदबाज जिन्हें अपने गेंदबाजी पर विश्वास कम और अंहकार ज्यादा था, की कुटाई भी सचिन के बल्ले ने मुक्त हाथों से किया था । चिरकुट इसलिए क्योंकि उनके क्रिकेट में खेल भावना कम और पाकिस्तानी बनकर भारत फ़तह करने की मंशा मुखर होकर दिखाई पड़ती थी ।
सचिन के प्रशंसकों की एक लंबी विश्वव्यापी फेरहिस्त है । भारत में उनके नाम के मंदिर हैं । सम्मान की एक लंबी कतार है और हम जैसे प्रशंसकों का विशाल जनसमूह जिनके लिए क्रिकेट की परिभाषा सचिन से होकर शुरू होता है ।
खैर! कुछ आलोचक भी हैं जिन्हें गाहे बगाहे ये लगता है कि सचिन ने क्रिकेट में निजस्वार्थ को पहले ढूंढा है । उनको बस इतना कहना है कि सचिन ने क्रिकेट को एक लंबे कालखण्ड तक अपने जीवन के बहुमुल्य क्षणों को समर्पित किया है । हो सकता है इस दौरान कुछ ऐसी परियाँ खेली गई हों जिन्हें आलोचकों को पसंद ना आया हो । वैसे एक सवाल तो उनके लिए भी है कि अगर सचिन ने क्रिकेट में निजस्वार्थ को पहले ढूंढा तो बाकि क्या कर रहे हैं ?