गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

सचिन -2

एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति ....

सचिन यूँ ही नहीं महान हैं । सचिन जैसा ना पहले कोई था, ना दूसरा कोई होगा । सर्वाधिक एकदिवसीय और टेस्ट शतक । सर्वाधिक एकदिवसीय और टेस्ट रन। अंतरराष्ट्रीय मैच में तीस हज़ार से ज्यादा रन । पहला एकदिवसीय दोहरा शतक । शतकों का शतक । एकदिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक बार मैन ऑफ द मैच।  सर्वाधिक विश्वकप शतक । 200 अंतरास्ट्रीय टेस्ट और 463 एकदिवसीय मैच खेलने के विशाल रिकॉर्ड के साथ सचिन अपराजेय लगते हैं ।
(कुछ छूट गया हो तो आपलोग जोड़ लीजियेगा)

ऊपर के आंकड़ों में 90-99 रनों के बीच 28 बार आउट होने और 80-89 रनों के बीच 30 बार आउट होने को सचिन अगर शतक में तब्दील कर, जोड़ पाते तो रिकॉर्ड क्या होता इसे कहने की क्या ही जरूरत है।
(गेंदबाज़ी कैरियर को अभी छोड़ देते हैं)

ख़ैर ! ऊपर के आँकड़े ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सचिन केवल क्रिकेट खेलने नहीं आए थे । उन्होंने क्रिकेट के हर स्वरूप को रचा है। जिसमें विलक्षण शॉट्स हैं । मर्यादित खेल भावना है । समर्पित संयम है और धीर-भीर और गम्भीर स्वभाव है । 

क्रिकेट के 24 साल के लंबे कैरियर के दौरान मैदान पर ऐसी घटनाएं विरले ही देखने को मिलती थी जब सचिन विचलित होकर खेल मर्यादा को लाँघ रहे होते थे। 

ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ़्रीका, वेस्टइंडीज और पाकिस्तान के दुर्धस गेंदबाजों के गलीच टिप्पणियों का प्रतिउत्तर सचीन ने हमेशा अपने बल्ले से ही दिया था और यह सिद्ध किया था कि वो यहाँ गालियाँ सुनने के लिए नहीं, पूजे जाने के लिए आया है ।

सचिन ने कई यादगार पारियाँ खेली हैं । हरेक प्रशंसक की अपनी सूची भी है । लेकिन सचिन की एक पारी सभी प्रशंसको की सूची में आज भी ऊपरी पायदान पर विराजती है ।  जब एक फूहड़/मूढ़ पाकिस्तानी गेंदबाज, अपने सर्वश्रेष्ठ होने के स्तम्भित दम्भ और सचिन को नवसिखुवा होने के पूर्वाभास में, यह चुनोती दे देता है कि "तुम मेरे गेंद को छू कर तो दिखाओ" और अगले ही क्षण उसके फूहड़पन और मूढ़मति का प्रतिउत्तर सचिन के दनदनाते शॉट्स देते हैं, फलस्वरूप दर्शकदीर्घा में जो खुशियों की कोलाहल आती है उसका स्मरण भी मंत्रमोहित करता रहता है । 

दुनियाँ के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों ने जहाँ सचिन का लोहा सहर्ष मानना स्वीकार किया था वहीं पाकिस्तानी चिरकुट गेंदबाज जिन्हें अपने गेंदबाजी पर विश्वास कम और अंहकार ज्यादा था, की कुटाई भी सचिन के बल्ले ने मुक्त हाथों से किया था । चिरकुट इसलिए क्योंकि उनके क्रिकेट में खेल भावना कम और पाकिस्तानी बनकर भारत फ़तह करने की मंशा मुखर होकर दिखाई पड़ती थी । 

सचिन के प्रशंसकों की एक लंबी विश्वव्यापी फेरहिस्त है । भारत में उनके नाम के मंदिर हैं । सम्मान की एक लंबी कतार है और हम जैसे प्रशंसकों का विशाल जनसमूह जिनके लिए क्रिकेट की परिभाषा सचिन से होकर शुरू होता है । 

खैर! कुछ आलोचक भी हैं जिन्हें गाहे बगाहे ये लगता है कि सचिन ने क्रिकेट में निजस्वार्थ को पहले ढूंढा है । उनको बस इतना कहना है कि सचिन ने क्रिकेट को एक लंबे कालखण्ड तक अपने जीवन के बहुमुल्य क्षणों को समर्पित किया है । हो सकता है इस दौरान कुछ ऐसी परियाँ खेली गई हों जिन्हें आलोचकों को पसंद ना आया हो । वैसे एक सवाल तो उनके लिए भी है कि अगर सचिन ने क्रिकेट में निजस्वार्थ को पहले ढूंढा तो बाकि क्या कर रहे हैं ?

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी,हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी....

राम राम जय राजा राम
राम राम जय सीताराम.....

अपने पिता, अज से मिली विशाल और वैभवशाली विरासत को संभालते हुए महाबाहु दशरथ को अब वंश की चिंता तीक्ष्ण शूल की तरह चुभने लगी थी। गुरुजनों, मंत्रियों और कुलपुरोहित के परामर्श पर अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का निर्णय लिया गया। सरयू नदी के उत्तर तट पर यज्ञ भूमि के निर्माण का स्थान निर्धारित किया गया। ऋष्यश्रृंग ने अग्निदेव का आह्वान किया।यज्ञ कुंड में पड़ रही आहुति से अग्नि की लपटें तेज होती गई। यज्ञ के अंत मे पुत्रेष्ठि यज्ञ का अनुष्ठान सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। यज्ञ कुंड से प्रजापत्य दिव्य पुरुष प्रकट हुए। राजा दशरथ के मनोरथ की पूर्ति होने के आशीर्वाद देने के बाद वे पुनः अंतर्ध्यान हो गए। सभी ऋषि मुनियों ने धर्म के जयजयकार के जयघोष किये। 

समय का पहिया आगे घूमता गया। तिथि, पक्ष और मास बदले। आज अयोध्या के शाही वैद्य नीलांजना को राजमहल में तुरन्त ही उपस्थित होने का आदेश आया था। दक्षिण कौशल नरेश पुत्री कौशल्या का सौम्य और संयत स्वभाव आज व्याकुल हो रहा था। प्रसव पीड़ा ने उन्हें बैचेन कर रखा था। तेज कदमों से राजमहल की तरफ बढ़ते हुए नीलांजना अपने इष्टदेव भगवान परशुराम से रानी कौशल्या को पीड़ारहित पुत्र प्रसव की कामना करती जा रही थीं। 

राज ज्योतिषी की गणना थी कि अगर बालक का जन्म मध्याहन से पूर्व होगा तो सृष्टि बच्चे की कृतियों को प्रलय के अंतिम वेला तक भी स्मृत करती रहेंगी परन्तु मध्याहन के बाद जन्म लेने वाले बालक को दुर्भाग्य का सामना करना पड़ेगा। 

रानी कौशल्या भी प्रसव पीड़ा के दौरान भगवान परसुराम को स्मरण किये जा रही थी। प्रभु परसुराम.... राम .... राम....। अयोध्या पूरी के राजभवन में किलकारी गूंजीं। वर्षों से पुत्र रत्नों के प्राप्ति को प्रतीक्षारत अयोध्या भूप की प्रतीक्षा अब समाप्त हुई। पवन देव ने हर्षित भाव से मन्दिरों में टँगे घण्टियों को बजाना प्रारम्भ किया। आरती के दीये स्वतः जल उठे। बादलों की घनराशि समेटे हुए इंद्रदेव अयोध्या के वितान पर स्वयं उपस्थित हो गए। देव् लोक से देवता, गन्धर्व, यक्ष आसमान में खड़े होकर इस अलौकिक क्षण के लिए संयत भाव से खड़े थे।

नीलांजना ने बच्चे को कौशल्या के गोद मे रख दिया। रानी कौशल्या की वर्षों से सूखी गोद ऐसी भर गई जैसे वर्षों से सूखी पड़ी नदी को विपुल जलराशि की प्राप्ति हो गई हो। माता कौशल्या ने बालक को छाती से लगा स्नेह भरे हाँथों से प्रथम स्पर्श किया। माँ के प्रथम स्पर्श से किलकरियों की गूंज तीव्र हो गई। बालक ने माता कौशल्या के खुले लटों को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। माता के नयन सजल हो गए, कौशल्या ने कहा राम.... प्रिय राम... । नीलांजना ने  समय सूचक यन्त्र को उत्सुकता भरी दृष्टि से तत्काल देखा। यह समय मध्याहन का था। दासियाँ सोहर गाने लगीं:-
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी,
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी....

राम की शक्ति पूजा - १

आज युद्ध से वानर सेना क्षत-विक्षत होकर शिविर में वापस लौटी थी। सुग्रीव, अंगद और लक्ष्मण रणक्षेत्र में रावण के अमोघ वाणों के प्रहार से मूर्छित हो कर गिर पड़े थे। राक्षसी शक्तियों का दर्प धर्मस्त वानरी सेना पर आज पुनः अट्ठहास कर रहा था जिसकी करकस ध्वनि वानर शिविरों तक स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी। शिविर के मध्य भाग में स्थित एक शिला पर चिंता भाव में भगवान श्रीराम मौन बैठे थे। पीछे अनुज लक्ष्मण, सम्मुख बजरंगबली,जामवंत,सुग्रीव,अंगद और वानर वीरों का दल श्रीराम के चिंतित चेहरे को देखकर व्यग्र होता जा रहा था। 
उम्र के थपेड़ों और अनुभव के रत्नों से परिपूर्ण स्थितप्रज्ञ विभीषण ने सभा के मौन को तोड़ते हुए श्रीराम को चिंतामुक्त होने का विनम्रतापूर्वक आग्रह करते हुए कहा की प्रलय को समेटे हुए आपके तूणीर में आज भी वही वाण शेष हैं जिनकी अमोघ शक्तियों से राक्षस कुल का समूल सर्वनाश तड़ित के द्रुत वेग से भी तीव्र गति से हो सकता है। आपके हाँथों में सुसज्जित ये वही कोदण्ड है जिसके टँकार मात्र से राक्षस सेनाओं में तुमुल कोलाहल मच जाता है। वीरों से भरे वानरदल,पवनपुत्र हनुमान, ब्रम्हा पुत्र जामवंत के होते हुए भी विजय के अंतिम क्षणों में यह कैसी चिंता, यह कैसा शोक!

श्रीराम शिला से उठे। अपने व्याकुल मौन को तोड़ते हुए विभीषण को एकटक देखते हुए कहा। मैं रावण के इस एक दिन के भीषण युद्ध को देखकर चिंतिंत नहीं हूँ राजन। मैंने आज युद्ध में रावण को अपनी दसभुज शक्तिबाहु से अशीर्वादित करते हुए माता शक्ति के दिब्य स्वरूप को भी देखा है। रावण भले ही कुकर्मी हो, कुसंगी हो, कुबुद्धि हो, कुलाचार विहीन हो लेकिन जब तक उसपर माता शक्ति की कृपादृष्टि पड़ती रहेगी यह युद्ध तब तक कैसे समाप्त हो सकता है भला! मेरी चिंता का यही मुख्य कारण है।

सब चुप बैठे रह गए। कुछ देर ठहर कर वृद्ध जामवंत ने सभा के मौन को तोड़ा। कहा महाराज अगर रावण जैसे अधर्मी की पूजा से माता शक्ति प्रशन्न हो कर उसे सर्वशक्तिसम्पन्न बना सकती हैं तो फिर आपको क्यों नहीं प्रभु? आप धर्मस्त हैं, माता शक्ति को आपकी पूजा निश्चित ही प्रतिफलित करनी पड़ेगी।आप के शक्ति पूजा के सम्पन्न होने तक वानर सेना अपने सम्पूर्ण शक्तियों में साथ राक्षसों से लड़ती रहेगी। पूरी सभा माता शक्ति के जयजयकार के जयघोष से अब आनन्दित थी। 

श्रीराम ने अपने प्रिय हनुमान को अगले सुबह तक 108 नीलकमल लाने का आदेश दिया। अगली सुबह पूर्वगिरी में उदयाचल सूर्य के उदय के साथ ही राम की शक्ति पूजा प्रारम्भ हुई....
"राम की शक्ति पूजा में महाप्राण निराला "